हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, हौज़ा-ए-इल्मिया क़ुम के शिक्षक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद महदी तवक्कुल ने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) की शहादत के मौके पर हौज़ा न्यूज़ के एक प्रतिनिधि से विशेष बातचीत में उनके जीवन और किरदार के महत्वपूर्ण पहलुओं पर रोशनी डाली।
उन्होंने कहा कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) ने पैग़ंबर-ए-इस्लाम (स) की वफ़ात के बाद अपने छोटे से जीवन में विलायत और इमामत की रक्षा की ऐसी मिसाल कायम की जो हमेशा इतिहास में चमकती रहेगी।
उन्होंने बताया कि शिया और सुन्नी दोनों परंपराओं के मुताबिक रसूलुल्लाह (स) ने अपनी ज़िंदगी में वह सारी बातें बता दी थीं जो इंसान को जन्नत के करीब और जहन्नम से दूर करती हैं। इमाम बाक़िर (अ) ने एक हदीस में फरमाया: “पैग़ंबर-ए-इस्लाम ने हज्जतुल विदा में फ़रमाया ऐ लोगो! ख़ुदा की कसम, जो चीज़ तुम्हें जन्नत के करीब लाती है, मैंने तुम्हें बताई है, और जो चीज़ तुम्हें जहन्नम के करीब ले जाती है, उससे मैंने तुम्हें रोका है।” (उसूल-ए-काफी, भाग 2, पेज 74, हदीस 2)
उन्होंने कहा कि क्या रहमत के पैग़ंबर (स) अपनी उम्मत को इतनी अहम चीज़ ख़िलाफ़त और उत्तराधिकारी का फैसला खुद करने के लिए छोड़ सकते हैं? बिल्कुल नहीं! क्योंकि पैग़ंबर ने साफ़ कहा: “मेरी उम्मत मेरे बाद 73 फ़िरक़ों में बंट जाएगी, जिनमें से सिर्फ़ एक जन्नत में जाएगा और बाकी 72 जहन्नम में होंगे।” (ख़िसाल-ए-सदूक़, भाग 2, पेज 585, हदीस 11)
सय्यद महदी तवक्कुल ने कहा कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) ने जिस तरह विलायत की हिफ़ाज़त और पैग़ंबर की वसीयत की रक्षा के लिए अपनी जान भी कुर्बान कर दी, वह मिसाल पेश करने लायक है। उन्होंने कहा कि विलायत का बचाव और साम्राज्यवाद का विरोध एक साथ चलने वाले मार्ग हैं और हज़रत ज़हरा (स) ने दोनों मैदानों में एक साथ संघर्ष किया।
उन्होंने हज़रत ज़हरा (स) के ऊँचे दर्जे पर बात करते हुए कहा कि "ख़ुदा, हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) की नाराज़गी से नाराज़ होता है और उनकी ख़ुशी से ख़ुश होता है।" यह उनके महान स्थान की साफ़ दलील है।
उन्होंने कहा कि हज़रत ज़हरा (स) ने ख़ुत्बा-ए-फ़दक्या के ज़रिए हक़ की पुकार उठाई, ग़ुस्से में आने की बजाय दलील और बुद्धिमत्ता से बात की, और ग़ासिबों से अलग रहकर यह जताया कि वह अन्याय और जालिम ताक़तों के साथ नहीं हैं।
आख़िर में उन्होंने कहा कि दुनिया के घमंडी और ज़ालिम ताक़तों के सामने कभी सिर न झुकाना हज़रत ज़हरा (स) की सच्ची सिख है। आज हमें भी उनके रास्ते पर चलना चाहिए और हर हाल में हक़ का साथ देना चाहिए। उनका जीवन और उनकी कुर्बानियाँ हमारे लिए हमेशा के लिए मार्गदर्शक हैं।
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